Blogger Autobiography
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प्यारे भाइयों और बहनों ,


पिछली कड़ी में आप लोगों ने इतना सारा प्यार दिया आप लोगों को बहुत-बहुत आभार.


Blogger Autobiography में आपका स्वागत है आपसे मैंने पिछले लेखनी में  वादा किया था कि मैं निजी जीवन से जुड़ी तमाम जानकारियां दूंगा ।जितना मुझे ज्ञात है एवं मेरी स्मृतियों मैं बसी हुई है मैं उन्हें जरूर आज बाहर लाऊंगा और अपने इस ब्लॉग में उन सभी बातों का जिक्र करूंगा ।
 चलिए चलता हूं अपनी कहानी पर पर । मेरा जन्म एकीकृत बिहार मैं हुआ था जो अब झारखंड प्रदेश का हिस्सा है। झारखंड का नाम आते ही आपके मन में वही जल जमीन जंगल खदानें दिखने लगी होंगी परंतु जहां मेरा जन्म हुआ था वह जिला काफी पिछड़ा हुआ था हालांकि अभी वह बिहार का सीमावर्ती जिला ही है जिससे कि बिहारी एवं झारखंडी दोनों ही संस्कृति हावी है वर्तमान परिपेक्ष में मेरा जन्म स्थल काफी विकसित जिला के रूप में अपनी पहचान बना चुका है हालांकि विकास के इस दौर में  जिला अपनी ऐतिहासिक पहचान खोता दिखाई पड़ रहा है। तमाम जगहों की तरह  इस जिले में भी पूंजीवादी प्रवृत्ति हावी हो चुकी है और राजस्व उगाही के चलते प्रशासनिक अमला भी  बेबस दिखाई पड़ता है। बालू माफिया जंगल माफिया एवं खदान माफियाओं का दोहन इस कदर हावी है कि जिला अपनी बेबसी पर रोता दिखलाई पड़ रहा है । जिससे जिले की प्राचीन स्थिति में काफी अंतर हो गया है और अपने सांस्कृतिक मूल्यों एवं विरासत को छोड़कर अंतिम सांस लेता दिखलाई पड़ रहा है। चलिए यहां यह मान लेते हैं कि परिवर्तन ही संसार का नियम है और विकासवादी संस्कृति में सब जायज है।
मेरे जीवन के 33 बसंत बीत चुके हैं काफी अरसा हो गया है ना फिर भी ऐसी बातें जेहन में बहुत हद तक याद कैद है। वह पलाश के पेड़ गुलमोहर के पेड़ सुंदर तालाब वृक्षों की हर हाली हरियाली पक्षियों के कलरव सब खत्म हो चुके हैं जब मैं दोस्तों के साथ सरकारी स्कूल जाता था न जाने कितने सपने आंखों में कैद रहते थे वह कॉमिक्स वाला जमाना जब हम उसे सब्जेक्ट की किताबों में छुपा कर पढ़ते थे वह सारी बचपन की नादानियां शैतानियां धीरे-धीरे कहीं गुम सी हो गई है आज के बच्चों को शायद ही वह जमाना कभी नसीब होगा और वे उस बारे में सपने में भी सोच नहीं सकेंगे क्योंकि उन्होंने कभी उस अनुभव को प्राप्त किया ही नहीं है सपने भी तब आते हैं जब हमें जरा सा भी अनुभूति हुई हो।
आप मेरे Blogger Autobiography  ka एक एक शब्दों का महत्व समझ सकते हैं कि शायद मुझे कितना अपने जेहन पर जोर देकर अपने बचपन से जुड़ी हर बातों को निकालना पढ़ रहा है । यह मानव जाति भी बहुत अजीब प्राणी होते हैं ना  क्योंकि  यहां हर मनुष्य का स्वभाव अलग होता है  बहुत से लोग  अपने  अतीत में जाना नहीं चाहते ।
 परंतु ऐसा नहीं है ना चाहिए  हर व्यक्ति के जीवन में  जीवन के हर पड़ाव में  कुछ खट्टे मीठे यादें होते होती है  जिसे  संजोए रखना भी  अपने आप में  बड़ी बात होती है।
  अतः आप पाठकों से भी निवेदन है  की जीवन  एक ही बार मिलता है । इसलिए जीवन के हर पल को काफी संजीदगी से बितानी चाहिए 8400000 योनियों के बाद काफी मुश्किल से मनुष्य को यह रूप मिलता है अर्थात मनुष्य जीवन मिलता है यथासंभव इसे  अपने तरीके से जीना चाहिए जीवन से हालांकि  एक रोबोट के तुलना में  एक मशीन की तुलना में एक मनुष्य के लिए यह बहुत ही कठिन समय होता है कि आप इतनी पुरानी बातों को पूरी तत्परता एवं तन्मयता के साथ निकाल सको ।


 मेरा बचपन

जब मेरा जन्म हुआ था तब मैं अपने परिवार के साथ बचपन में एक मिट्टी के घर में रहा करता था जिसका छप्पर खपरैल थे वह मिट्टी वाला घर भी क्या था  वह अंग्रेज जमाने का शायद हॉस्टल था  जिसे बाद में  मेरे दादाजी को एलॉट कर दिया गया था  जिसमें कि वह अपने परिवार के साथ रहते थे  और अपनी दिनचर्या निभाकर कर आते थे और अपनी कुटिया में उस कुटिया में अपनी समय व्यतीत करते थे हमारे लिए तो वह किसी भी पांच सितारा होटल से कम नहीं था क्योंकि उसे झोपड़ी में कुटिया में दादाजी ने कभी हमें कोई परेशानी है नहीं होने दी क्योंकि उस कुटिया में यथासंभव उनसे जितना बन पड़ता था उन्होंने सुख सुविधा की हर चीज उपलब्ध कराई थी।

दादा जी का परिचय

 मेरे दादाजी पैसे से हाई स्कूल में शिक्षक थे और आप एक शिक्षक की आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगा सकते हो वह भी उस दौर में समय में सरकारी मुलाजिम होने के बावजूद उस समय शिक्षक की क्या हैसियत होती थी लाल किताब का माहौल आज के भाव से बहुत बेहतर था  बच्चे अपने  शिक्षकों का बहुत सम्मान करते थे  बीते वक्त के साथ आज ऐसा नहीं है आज के हालात का तो अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हो  परंतु  आज बुधवार है जहां एक सरकारी शिक्षक होना एक किसी बड़े सपने के पूरे होने से कम नहीं है  हर कोई आज सरकारी शिक्षक ही होना चाहता है  क्योंकि लोगों की नजर में इससे ज्यादा पैसा और आराम देने वाली नौकरी शायद ही कोई होगी।

 दादाजी  एक स्वाभिमानी व्यक्तित्व के  थे । वह एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे समाज सेवा लेखन शिक्षा लीडरशिप एवं जाने कितने उनके भीतर इतने ही गुण विद्यमान थे बेहट लेखक और एक अच्छे कवि भी थे  अच्छे वक्ता के रूप में भी  उन्होंने अपना अपनी पहचान कायम की  बहुत सारे सम्मान से भी  उन्हें सुशोभित किया गया  प्रोफेसर यशपाल जैसी शख्सियत ने भी  उनकी प्रतिभा पहचानी  और प्रोफ़ेसर यशपाल के साथ भी उन्हें लंबे समय तक काम करने का मौका मिला जब भी उन्हें मौका मिला उन्होंने  मिसाल  कायम किया ।


अभी के दौर में ऐसे विरले ही व्यक्तित्व देखने को मिलते हैं जो इतनी ईमानदारी से अपने मिले गए कार्यों का निर्वहन करते हैं।
चापलूसी करना शायद उनकी फितरत में नहीं था  । हालांकि
वह दौर मुफलिसी का दौर था क्योंकि एक बड़े परिवार के निर्माण का भी दायित्व मेरे दादाजी के ही कंधे पर था दादाजी की दादाजी की चार संतानों में से दो लड़के एवं दो लड़कियां थी दादा जी के बड़े संतान यानी मेरे पापा के पास अपना कोई भी रोजगार नहीं था और उनके उन्हें छोटे बेटे को पढ़ाने की भी जिम्मेदारी उन्हीं के कंधे पर थी साथ ही साथ दो लड़कियों के पढ़ाई लिखाई से लेकर उनके शादी ब्याह एवं की भी जिम्मेदारी थे। फिर भी मैंने उन्हें कभी इस बारे में कभी चिंतित नहीं देखा हरफनमौला मिजाज के व्यक्ति थे एवं आशावादी रहना उनकी फितरत में था।

 यह बात बता दूं कि जब मैं शायद 2 वर्षों का था मेरी मां का देहांत हो गया था ।   इसके बाद मेरी दादी ही मेरी मां का स्वरूप बनकर मेरे साथ सदा जब तक वह जीवित रही मेरे साथ रही ।
 दादा दादी के  सानिध्य में ही रहकर मैंने अपना बचपन गुजारा  इसलिए मैं उनकी आंखों का तारा था । उन दोनों का मेरे जीवन में बहुत ही खास योगदान रहा  और  उनके कारण ही जीवन जीने का हौसला पा सका ।

हर माता-पिता एवं अभिभावक का सपना होता है कि उनके बच्चों का नामांकन किसी विद्यालय में हो इसलिए 4 वर्ष की आयु में उन्होंने मेरा नामांकन जिले के सबसे प्रतिष्ठित स्कूल एवं एकमात्र प्राइवेट स्कूल में कराया।
 दादाजी के पास इतने पैसे नहीं होते थे कि  फीस निरंतर एवं सही समय पर चुकाई जा सके फिर भी उन्होंने अपने महत्वपूर्ण खर्चे को काटकर प्रारंभिक शिक्षा एक प्रतिष्ठित प्राइवेट स्कूल में कराया । आर्थिक समस्या के कारण ऐसा करना बहुत लंबे समय तक संभव नहीं था इसलिए उनकी इच्छा थी कि मैं भारत सरकार द्वारा संचालित जवाहर नवोदय विद्यालय प्रवेश परीक्षा मैं सफल हो जाऊं जिससे कि कि मेरी 12वीं की तक की बेहतर पढ़ाई  सरकारी खर्चे से हो जाए ।


Navodaya Vidyalaya 

जवाहर नवोदय विद्यालय भारत के लगभग हर जिले में अवस्थित है और केंद्र सरकार की एक महत्वपूर्ण योजना है जिसके तहत जिले के मेधावी बच्चों को प्रवेश परीक्षा के माध्यम से दिया जाता है और उनकी प्रतिभा को खोज कर विद्यालय में नामांकित किया जाता है ।
उनकी दिली इच्छा थी कि मैं जवाहर नवोदय विद्यालय में पढ़ाई करने जाऊं इसलिए उन्होंने मेरा नामांकन सरकारी विद्यालय में कराया नवोदय विद्यालय में प्रवेश हेतु यह नियम होता है कि बच्चे की तीसरी से लेकर पांचवी तक की शिक्षा दीक्षा किसी सरकारी विद्यालय में हुई हो  अर्थात इस विद्यालय का  मुख्य आधार  जिले के गरीब एवं  मेधावी छात्रों को अच्छी शिक्षा का आधार प्राप्त हो सके  ताकि गरीबी उनकी प्रतिभा में बाधित ना हो सके  इसलिए  पूर्व प्रधानमंत्री  राजीव गांधी का यह  सपना था  और नवोदय विद्यालय  उसी सपने का एक रूप था । दादाजी मेरे नामांकन बाल विकास से हटाकर बोर्ड मध्य विद्यालय स्कूल में कराया दादा जी के सपने को पूरा करने के लिए  मेरे अंदर भी बहुत जज्बा था इसलिए मैं अंततः जवाहर नवोदय विद्यालय प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ एवं छठी कक्षा में जवाहर नवोदय विद्यालय में नामांकन पा गया इस परीक्षा को  ध्यान में रखकर  दादाजी ने मुझसे वादा किया था कि अगर मैं यह परीक्षा पास कर लूंगा  तब वह मुझे अपेक्षित  इनाम देंगे  और यह इनाम  मेरी ओर से डिमांड किया हुआ होगा ।
यह उनके किसी सपने के सच होने जैसा ही था क्योंकि उनकी आंखों में शुरू से मैंने वह सपना देखा था और मैं उसे पूरा करने में सफल रहा इसके बाद मेरा घर से दूर रहने का एक बुरा अनुभव शुरू हो गया आप अंदाजा कर सकते हो कि कोई बच्चा बचपन से अपने घर से इस कदर जुड़ा हो और उसे हॉस्टल जाना पड़ जाए तो उसके जीवन पर क्या बीती होगी ।

My Navodaya's life


छठी कक्षा से हॉस्टल वाली जिंदगी शुरु हो गई हालांकि किसी भी बच्चे के लिए अपने घर को छोड़कर हॉस्टल जाना काफी दुखद होता है क्योंकि घर से दूर होना किसी बच्चे के लिए एक नया अनुभव होता है अपने परिवार एवं अपनों  के साथ रहने में जो आनंद आता है बच्चा अपने परिवार से अलग होने की कल्पना से ही दुखी हो उठता है।
 परंतु खैर मैं अपने दादाजी के सपने के सपने को पूरा करने के लिए सपने को अंजाम देने के लिए मैं नवोदय विद्यालय के हॉस्टल में चला गया और वहां मैंने छठी कक्षा में प्रवेश ले लिया कुछ दिनों तक तो मुझे बड़ा ही वहां का माहौल बहुत ही अजनबी सा लगा लेकिन धीरे-धीरे वहां में मैं एडजस्ट हो गया नवोदय विद्यालय में भी मैं छोटा एवं प्यारा होने के कारण वहां भी सबकी आंखों में बसने लगा सभी शिक्षक एवं मेरे सीनियर दीदी एवं भाइयों मुझे बहुत प्यार दिया ।खासकर सीनियर कक्षा की दीदी लोगों ने तो मुझे अपनी आंखों सिर आंखों पर बिठाया जिसके कारण मेरे सहपाठी मुझसे जलते भी थे क्योंकि गर्ल्स हॉस्टल के अंदर प्रवेश करना सबके लिए संभव नहीं होता था फिर भी मैं इतना प्यारा और दुलारा था कि अक्सर ब्रेक टाइम में मेरी सीनियर दीदी लोग मुझे हॉस्टल के अंदर ले जाती थी मुझे खिलाती पिलाती थी और बहुत सारा प्यार भी देती थी शायद मेरे अंदर भी उन्हें अपने भाई का अक्स दिखता होगा। लड़कों की डॉरमेट्री में भी मैं सभी सीनियर भैया लोगों का बहुत दुलारा बन गया था। खैर बच्चे तो बच्चे ही होते हैं  और सभी बच्चों की आदतें भी  एक दूसरे से अलग होती है  हर बच्चे के अंदर कुछ ना कुछ  अलग होता है  जिससे  बच्चे  अपने को कुछ अलग करने के लिए प्रेरित होते हैं । मेरे अंदर भी एक विशिष्ट हॉबी थी क्योंकि मुझे बचपन से बाइक एवं गाड़ियों का बहुत क्रेज होता है ऐसी गाड़ियों के पोस्टर भी मैं जमा करता था और उन्हें अपने कमरे में दीवारों पर  लगाकर रखता था ।अक्सर  सपने में भी गाड़ी चलाता रहता था । यह बात में ऊपर बता चुका हूं कि नवोदय विद्यालय प्रवेश परीक्षा से पहले दादाजी ने मुझसे प्रॉमिस किया था कि अगर तुम नवोदय परीक्षा पास कर लोगे तो तुम मुझसे जो चाहो वह मांग सकते हो बस इसी बात का मैंने फायदा उठाया और मैंने उनसे प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद एक स्कूटर की डिमांड कर दी । यह कैसा डिमांड था ऐसे डिमांड को जानकर सभी लोग सन्न रह गए क्योंकि मैं आपको बता चुका हूं कि मैं अपने दादाजी अपने कमिटमेंट को किसी भी हाल में तोड़ना नहीं चाहते थे  अर्थात  वह मुझे हर हाल में नाराज नहीं करना चाहते थे। वह भी नहीं चाहते थे कि मैं उनसे कुछ मांगा और वह पूरा नहीं कर पाए मंकी मुझे याद है कि मेरे इस बाल हट के कारण  उनकी बेबसी  किस कदर रही होगी  आज मैं इस बात को  अच्छी तरह से समझ चुका हूं। हालांकि इसके लिए बहुत से लोगों ने मुझे समझाया भी और उसके विकल्प में कुछ और भी मांगने के लिए कहा लेकिन मैं तो अपनी जीत पर कहां मानने वाला था मैं तो अपनी जिद पर अड़ा रहा और मैंने नई  बजाज सुपर  एफ ई वह भी नेवी ब्लू कलर की  लेकर ही मानी । एक मामूली शिक्षक की हैसियत रखने वाले दादा जी से मैंने समझो  आसमान से चांद तोड़कर लाने जैसी बात कर दी थी  परंतु  उन्होंने मेरी जिद को पूरा कर ही दिया  मुझे स्कूटर दिला कर  कर। दादा जी के मित्र जनों ने एवं बहुत सारे जिन लोगों ने ऐसी डिमांड सुनी उन्होंने मुझे बारी-बारी से समझाया परंतु मैंने किसी की ना मानी बाल हट शायद ऐसा ही होता है अच्छे बुरे का कुछ ख्याल नहीं रहता क्योंकि बच्चे तो अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं उन्हें क्या पता कि परिवार के मुखिया पर कितनी सारी जिम्मेदारियां होती है और उन जिम्मेदारियों के बीच वह चक्की की तरह पिसता रहता है।

 स्कूटर खरीदने के लिए


 स्कूटर खरीदने के लिए पता नहीं मेरे दादाजी को कितने संघर्ष करने पड़े होंगे यह बात मैं आज समझ सकता हूं क्योंकि आज भी आज मैं भी एक अभिभावक हूं । वर्तमान में  मैं आज दो बच्चों का पिता बन चुका हूं इसलिए इस बात को मैं महसूस कर सकता हूं कि अगर कोई बच्चा जिद करता है किसी चीज के लिए तो मां-बाप को उसे कितने संघर्षों कितने अरमानों को और अपने खर्चों में कटौती करके अपने बच्चे की जिद पूरी करते हैं यह बात मैं आज पूरी तरह से समझ चुका हूं क्योंकि आज मेरे ऊपर बात आई है तो मैं खुद इस बात को अच्छी तरह समझता हूं  बच्चे जो है बहुत बात को समझते नहीं और अपनी बाल हट कर देते हैं और अंततः अपने अभिभावकों पर कितनी परेशानी डालते हैं यह बच्चे जब बड़े होंगे और वह खुद अभिभावक बनेंगे तभी इस बात को समझ सकते हैं।

प्रिय भाइयों एवं बहनों Blogger Autobiography me यह सभी लिखते हुए मेरे हर शब्द शब्द मेरे दिल के उद्गार से जुड़े हुए हैं एवं मेरी भावनाओं के साथ छन छन कर बाहर आ रहे हैं। टेक्नोलॉजी के हमारे जीवन पर बढ़ते प्रभाव ने हमारे अंदर की सारी समरसता छीन ली है। बच्चों से उनका बचपन छिनता जा रहा है आपसे अनुरोध है कि आप अपने बारे में सोच कर तो देखो कुछ लिख कर तो देखो अगर आप ऐसा करोगे तो आपको अपने अंदर एक सकारात्मक बदलाव आता महसूस होगा।

 ब्लॉग की अगली कड़ी में मैं अपने नवोदय विद्यालय का जीवन एवं एक नवोदयन की भूमिका में मैं अपनी सच्ची कहानी लेकर आऊंगा जिसमें जीवन से जुड़ी हुई अनछुए पहलुओं का भी जहां तक हो सकेगा जिक्र करूंगा। ऐसा करते हुए बहुत ही  रोमांचित हो जाता अक्सर सोचता हूं कि काश कोई टाइम मशीन होती तो समय के उसी दौर में वापस हो जाता है। लेकिन समय पर कहा किसी का कंट्रोल होता है समय तो अपनी रफ्तार में बढ़ती ही जाती है और हम लोग भी जीवन के भवर में उलझते ही चले जाते हैं ।

Blogger Autobiography episode ke last mein

प्रिय भाई बहनों आपको मेरी लेखनी कैसी लगी बताना जरूर इसे पढ़ने के बाद अपने विचार कमेंट के माध्यम से जरूर दीजिएगा एवं इसे हो सके तो शेयर भी कर दीजिएगा ,इंतजार कीजिए मेरी अगली कड़ी का मैं जल्दी आपके पास हाजिर होऊंगा।
 आपका मोनू